Loading
पटना, २१ दिसम्बर। हिन्दी देश के किसी भी दूसरी भाषा का नहीं, केवल अंग्रेज़ी का स्थान लेना चाहती है, जो वास्तव में हिन्दी का ही स्थान है। यह दुर्भाग्य और लज्जा का विषय है कि एक स्वतंत्र राष्ट्र में अब भी बहुत बड़े क्षेत्र में उस भाषा का शासन चल रहा है, जिसने देश को ग़ुलाम बना कर रखा था। वैश्विक-लज्जा के इस विषय से भारत को तभी मुक्ति मिलेगी, जब देश की एक भाषा, प्रत्येक नागरिक की बोली बन जाए। देश की कोई एक भाषा तो होनी ही चाहिए, जिसे पूरा देश जानता, समझता और प्रयोग कर सकता हो। इन विचारों और हिन्दी भारत की शीघ्र ही राष्ट्रभाषा बने, इस हेतु अविराम प्रयत्नशील रहने के संकल्प के साथ बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का दो दिवसीय ४४वाँ महाधिवेशन भव्यता के साथ संपन्न हो गया।