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बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष ही नहीं "हिन्दी प्रचारक" भी थे देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष ही नहीं "हिन्दी प्रचारक" भी थे देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद
by
Arun Pandey,
December 02, 2025
in
बिहार
साहित्य देवता को समर्पित कर दिया था मिथिलेश कुमारी ने अपना वैधव्य-जीवन
जयंती पर आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन
पटना, ०२ दिसम्बर । भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संस्थापकों में से प्रमुख और सम्मेलन के अध्यक्ष ही नहीं, सम्मेलन के एक नियुक्त "हिन्दी-प्रचारक" भी थे। दक्षिण-भारत के अनेक प्रांतों में उन्होंने हिन्दी का प्रचार किया। राष्ट्र और राष्ट्र-भाषा के लिए दिया गया उनका बलिदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। "हिन्दी-सेवा" उनके लिए "राष्ट्र-सेवा" थी।
यह बातें देशरत्न की जयंती की पूर्व संध्या पर मंगलवार को हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के बाद देशरत्न ही भारत के प्रतिनिधि नेता थे। २०वीं सदी में उनके जैसी मेधा का दूसरा कोई व्यक्ति नहीं हुआ। इसीलिए उनकी जयंती को हम "राष्ट्रीय मेधा-दिवस" के रूप में मनाने का आग्रह बरसों से करते आ रहे हैं।
जयंती पर बहुभाषाविद् विदुषी डा मिथिलेश कुमारी मिश्र को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि मिथिलेश जी को युवावस्था में ही वैधव्य का दारूण दुःख सहना पड़ा। किन्तु उन्होंने अपना संपूर्ण शेष जीवन साहित्य-देवता को समर्पित कर दिया। उन्हें संस्कृत के साथ तमिल, तेलगू,कन्नड़ आदि अनेक दक्षिण भारतीय भाषाओं का विशद ज्ञान था। दक्षिण में हिन्दी के प्रचार और प्रसार में उनका अतुल्य योगदान रहा है। भाषा के स्तर पर उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने वाली वो एक दिव्य-सेतु थीं।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद जी ने कहा कि राजेन्द्र बाबू अद्भुत मेधा के महापुरुष थे। सिक्किम में भी उनके प्रति लोगों की असीम श्रद्धा मैंने देखी। गांधी जी की प्रेरणा से राजेंद्र बाबू ने देश-सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर दिया। राष्ट्रपति रहते हुए वे समाज से जुड़े रहे। उनकी जीवनी पाठ्यपुस्तकों में आनी चाहिए। उनका जीवन अनुकरणीय है।
समारोह के मुख्यअतिथि और पूर्व केंद्रीय मंत्री पद्मभूषण डा सी पी ठाकुर ने कहा कि राजेंद्र बाबू के जीवन से हमें निरन्तर गतिशील रहने की प्रेरणा मिलती है। हमें सदैव स्वयं को और समाज को उन्नत बनाने की चेष्टा करनी चाहिए। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा रत्नेश्वर सिंह, डा समरेंद्र नारायण आर्य, उर्मिला नारायण, डा मुकेश कुमार ओझा, मिथिलेश जी का पुत्र नीलाभ मिश्र तथा उनके जमाता जय किशन ने अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरम्भ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि शायर आरपी घायल, आचार्य विजय गुंजन, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, सिद्धेश्वर, कुमार अनुपम, ईं अशोक कुमार, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, डा सुषमा कुमारी, रौली राजवी, इन्दु भूषण सहाय, राज आनन्द आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी काव्यांजलि अर्पित की। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन मिथिलेश जी की पौष्यपुत्री श्रद्धा कुमारी ने किया।
डा चंद्रशेखर आज़ाद, सिकंदरे आज़म, रमेश सिंह, नवल किशोर सिंह, अश्विनी कविराज, अभिराम, राम प्रसाद ठाकुर, नन्दन कुमार मीत आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।
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