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अरुण कुमार पाण्डेय बिहार में 75% आरक्षण लागू कर सीएम नीतीश कुमार ने पीएम नरेन्द्र मोदी से "सुरक्षा कवच" मांगी है। नीतीश की यह राजनीतिक चाल न सिर्फ इसका श्रेय लेने की भरसक कोशिश है बल्कि केन्द्र के पाले में डालकर पिछड़े,अति पिछड़े और दलितों की आबादी के हिसाब से उनकी हिस्खसेदारी एवं हक दिलाने का भी राजनीतिक दबाव बढाने की भी रणनीति है। कैबिनेट की आज यहां सीएम नीतीश कुमार की हुई बैठक में राज्य सरकार की ओर से केंद्र सरकार को नौकरी और नामांकन में 75% आरक्षण संबंधी अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद -31(ख) के अधीन 9वीं अनुसूची में शामिल करने हेतु राज्य सरकार की अनुशंसा भेजने का प्रस्ताव स्वीकृत किया गया है। बैठक में एक अलग प्रस्ताव स्वीकृत कर सीएम नीतीश कुमार को 75% आरक्षण लागू करने का श्रेय देने का भी प्रस्ताव स्वीकृत किया गया। अनुसूचित जाति का 20%,अनुसूचित जनजाति का 2%,पिछड़ी जाति का 18% और अति पिछड़ी जाति का 25% यानी कुल 50% से बढ़ाकर 65% आरक्षण करने को लेकर सीएम नीतीश कुमार को धन्यावाद दिया गया। इससे इन वर्गों के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों को बढ़ावा मिलेगा तथा संविधान प्रदत्त सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय की व्यवस्था सुनिश्चित हो सकेगी। अब सवाल उठता है कि राज्य सरकार ने 75% आरक्षण लागू करने के बाद केंद्र को इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने की अनुशंसा क्यों भेजने का फैसला लिया है? मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50% तय की है। इसके ऊपर आरक्षण को बढ़ाना संवैधानिक रूप से चुनौतीपूर्ण है। 75% आरक्षण को लागू करने की राह में कोर्ट का हस्तक्षेप हो सकता है? तब यह सवाल उठना लाजिमी है कि 75% आरक्षण लागू करने का क्या भविष्य है हालांकि आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य जाति के आर्थिक रूप से कमजोर(EWS) के लिए संविधान मेें संशोधन कर 10% आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्रारा मान्य होने के बाद 50% की सीमा बढाने को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।